शक्ति परीक्षण से पहले अभी बाकी हैं ये पांच बड़े सवाल

नई दिल्ली
महाराष्ट्र में क्या देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बची रहेगी? अगर वे नहीं तो कौन करेगा सत्ता पर कब्जा? कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना मिलकर क्या भाजपा को रोक पाएंगे? इन सवालों के जवाब 30 नवंबर को प्रस्तावित विश्वास मत से मिल जाएंगे।

लेकिन तब तक इंतजार करने की जरूरत शायद न पड़े, उससे पहले अध्यक्ष का चुनाव काफी चीजें स्पष्ट कर सकता है। सबसे महत्वपूर्ण, यह सामने आ जाएगा कि क्या फडणवीस के पास जरूरी बहुमत है।

महाराष्ट्र की 288 सीटों की विधानसभा में एनसीपी ने 54 सीटें हासिल की थी, उससे अलग हुए अजित पवार को इन्हीं 54 में से 36 विधायकों को विश्वास मत के समय अपने साथ भाजपा के समर्थन में प्रस्तुत करना होगा।

ऐसा करके ही वे दो-तिहाई विधायकों को अपने साथ प्रस्तुत कर पाएंगे और दल बदल कानून के तहत सदस्यता गंवाने से बच सकेंगे। हालांकि अजित पवार ने खुद को एनसीपी में ही बताकर विचित्र स्थितियां पैदा कर दी हैं, यह साफ नहीं है कि वास्तव में कितने विधायक अजित पवार के साथ हैं।

सामने खड़े सवाल

1. अध्यक्ष पद का चुनाव
आंकड़ों की राजनीति से अलग, बड़ा प्रश्न है कि महाराष्ट्र विधानसभा के लिए अभी अध्यक्ष चुना जाना है। अध्यक्ष पद इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि विधायक दल का नेता कौन है, इसका निर्णय वही करते हैं। विधायक दल का नेता व्हिप जारी कर सकता है, जिसके तहत पार्टी के सभी विधायकों को विधानसभा में मौजूद रहना होता है, और नामित व्यक्ति को पार्टी के पूरे वोट दिए जाएं।

एनसीपी ने शनिवार को भले ही अजित पवार को हटाकर जयंत पाटिल को अपना विधायक दल नेता बना दिया है, लेकिन अजित पवार अब भी इस पद पर बने रहने का दावा कर सकते हैं। अपने को पद से हटाए जाने के मामले को वे कोर्ट लेकर जा सकते हैं, ऐसा हुआ तो विवाद नए आयाम लेगा और समय भी।

2. अध्यक्ष पद चुनाव से फडणवीस पर असर
यह देवेंद्र फडणवीस के लिए सबसे महत्वपूर्ण होगा। अगर उनके पास भाजपा द्वारा नामित सदस्य को अध्यक्ष बनाने योग्य बहुमत जुटा लिया गया, तो यह संकेत होगा कि वे विधानसभा में संख्याबल पा चुके हैं।

3. और अजित पवार के लिए मायने
अगर भाजपा द्वारा नामित सदस्य विधानसभा अध्यक्ष बनता है, तो संभव है कि वह शरद पवार द्वारा अजित पवार और उनके समर्थक विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग करने पर निर्णय लेने में जल्दबाजी न दिखाए। लेकिन शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस का नामित सदस्य अध्यक्ष बना तो निर्णय जल्द व शरद पवार के अनुसार आ सकता है।

4. अगर भाजपा को बहुमत नहीं मिला?
शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार बनाने का दावा ज्यादा मजबूती से करेंगे। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा हुआ तो बहुत संभव है कि उन्हें बहुमत भी मिल जाए।

5. दूसरे पक्ष को भी बहुमत नहीं मिलने पर?
शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस को भी बहुमत नहीं मिला तो महाराष्ट्र में फिर से राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाएगा। साथ ही नए चुनाव घोषित होंगे।

दल बदल कानून जानिए

दो हफ्ते पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के अयोग्य घोषित विधायकों के मामले में अपने निर्णय में गर्व से टिप्पणी की थी कि ‘91वां संविधान संशोधन कर राजनीति में दलबदल को रोकने प्रयास करने वाला भारत विश्व का पहला देश बना।

कनाडा, इस्राइल आदि ने भी हमारे जैसा कानून बनाया।’ भारत में इसकी जरूरत हरियाणा में 1967 के विधायक गया लाल जैसे मामले सामने आने बाद महसूस हुई जिन्हाेंने केवल नौ घंटे में में तीन दफा अपनी पार्टी बदली थी। 1985 में बना भारत का दल-बदल कानून तय करता है कि विधानसभाओं व संसद में चुने हुए जनप्रतिनिधि यदि अपनी पार्टी छोड़ते हैं तो उसकी सदस्यता का क्या होगा?

कब जाती है विधायकी-सांसदी

तीन प्रमुख वजह हैं, जनप्रतिनिधि स्वेच्छा से अपनी पार्टी छोड़े, पार्टी व्हिप के खिलाफ सदन में मतदान करे या अनुपस्थित रहे और एक पार्टी से चुने जाने के बाद दूसरी पार्टी की सदस्यता ले। पार्टी छोड़ने के मामले में एक अपवाद है कि अगर पार्टी के दो-तिहाई विधायक या सांसद एकसाथ दल बदलते हैं, तो सदस्यता नहीं जाएगी। एनसीपी 54 विधायकों में से 36 विधायकों को अजित पवार अपने साथ इसलिए लिए खड़ा हुआ बता रहे हैं।

अयोग्यता का निर्णय कौन करता है?

अध्यक्ष यह निर्णय लेता है। हाल ही कर्नाटक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिकार पर विस्तृत चर्चा की और साफ किया कि इसके लिए अध्यक्ष के पास ठोस वजह होनी चाहिए।

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